अलख निरंजन अलख निरंजन ।
प्रार्थना
रचनाकार - पुज्य चितळेबाबा.
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन।
सब धर्मों का एक ही भंजन ।। नाम प्रभू का अलक्ष निरंजन। ।।ध्रु।।
सब शक्ति का एकही भंजन । नाम गुरू का अलख निरंजन।
चौ वेदों का एक ही भंजन । चौ मितियों का एक ही रंजन ।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।1।।
चली शाबरी शक्ति ऐसी । इस दुनिया की ऐसी वैसी
कोई नही किसी का इस दुनिया में । अकेले आना अकेले जाना ।
इस दुनियासे क्या लेना । य़े तो सारे संगी साथी ।जैसे शादी के बाराती।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।2।।
ब्रह्म रुप सब तेरी माया। मां के गर्भ में स्थान दिलाया ।
बहुत नरक यातना पाया ।सो हम् मंत्र का जाप किया।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।3।।
तब तो दिया मुझे झुटकारा । जैसा मिला मुझे झुटकारा ।
कोहम् मंत्र का मारा नारा । बहु कष्टों से पाई काया ।
बचपन खेल में बीत गया । तभी न मैंने तुझको पाया।
दिन ब दिन बढ़ गई काया । फिर प्रभूजी चढे जवानी । जैसे चाहे कर मनमानी।
षङ्रिपु की शक्ति ऐसी । भक्ति की हो गई ऐसी वैसी।
किस कारण मैं ने जन्म लिया । क्या तुझ से जो वादा किया ।।
सब कुछ मैं जो भूल गया। अहः तत्व ने जन्म लिया ।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।4।।
आयी जवानी आयी जवानी ।आयी जवानी गयी जवानी।
गई जवानी आया बुढापा। जगह जगह पर पाया धोखा।
झुटे रिश्ते झूटे नाते । ये तो सारे आते जाते । क्षण में सारे बदलते जाते।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।5।।
चार वेद है । कई मंत्र है। कई साधु है । कई संत है।
कई धर्म है। कई पंथ है। किस रस्ते से कैसे जाऊं ।
प्रभुजी तुझको कैसे पाऊं। गुरूजी तुझको कैसै पाऊं।
मैं मुढ़ मति हूं। मैं अज्ञानी। जैसे चाहे कर मनमानी।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।6।।
कई नाम तू धारण करता । कई धर्मों में आता जाता।
सब दुनियासे तेरा नाता।
कभी बनता नर कभी बनता नारी। माया तेरी ये है सारी ।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।7।।
किस नाम से तुझे पुकारू ।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन।
कहत गुरू -
अलक्ष निरंजन मंत्र जो गावे। प्रभू उसीकी साथ निभावे।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।8।।
अनाहत की ऐसी शक्ती। चरण में तेरे मेरी भक्ती।
षड़चक्रों को जागृत करना। तेरे चरण का मार्ग दिखाना।।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।9।।
भवसागर से मुझे क्या लेना। चाहे दे तू पार कर देना।
आगे कहीं में जहा भी जाऊं । जिस योनी में जहां भी जाऊं।
सब कुछ मैं जो भूल गया। अहः तत्व ने जन्म लिया ।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन। ।।10।।
जहां कहीं मैं जन्म ही पाउं। उसकी मुझको नहीं है चिंता।
एकही वर जो मुझको देना । इस दिन को भूल न जाना।।
हरदम आपके चरण रखना ।
अलख निरंजन अलख निरंजन । नाम गुरू अलख निरंजन।
सब शक्ति का एकही भंजन ।। नाम प्रभू का अलक्ष निरंजन । ।।11।।
या प्रार्थनेची निर्मिती कशी व कुठे झाली
सांगतायत बाबा शीघ्र कवन करून...
ते “शीघ्र कवी चितळेबाबा” या शीर्षकात वाचा...“